Hindi Summary: The Artist | Shiga Naoya – Bihar Board 12th | 100 Marks English | by Malendra Sir
‘द आर्टिस्ट’, जापानी लेखक शिगा नओया के द्वारा लिखी गई एक लघुकथा है।
यह कहानी शिक्षा और बच्चों के परवरिश के प्रति शिक्षकों एवं अभिभावकों के पारंपरिक नज़रिए को व्यक्त करती है।
शिक्षक और अभिभावक सोचते हैं की पढ़ाई के अलावा दूसरी चीजों पर समय खर्च करना समय की बर्बादी है।
इस कहानी में, सिबी, स्कूल जाने वाला एक बारह साल का लड़का है, जिसकी कद्दुओं की रंगाई में गहरी रुचि होती है।
उसे जब भी समय मिलता वह अपने आपको इस काम में लगाने की कोशिश करता।
उसके पिता को यह पसंद नहीं था।
लेकिन सिबी अपने पिता की नापसंदगी के बावजूद अपनी हॉबी को जारी रखता है।
उसे जब भी समय मिलता वह बाज़ार जाता और अलग-अलग आकर के कद्दु ख़रीद लाता, फिर पूरे लगन से उनकी रंगाई करता और उन्हें सुखाता।
उसके पास रंगे हुए कद्दुओं का एक संग्रह तैयार हो गया था।
एक दिन उसने एक बूढ़ी महिला से पांच इंच का एक छोटा -सा कद्दू ख़रीदा।
इस खास कद्दू ने उसे बहुत आकर्षित किया था। वह जहाँ भी जाता उसे साथ ले जाता।
एक दिन वह उस कद्दू को स्कूल ले गया और वहां मेज के नीचे उसे रंगने लगा।
नीतिशास्त्र के शिक्षक ने उसे कद्दू को रंगते देख लिया।
उसने पढ़ाई को नजरअंदाज करने और कद्दुओं के साथ खेलने के लिए सिबी को बहुत डांटा।
उन्होंने उससे कद्दू लिया और सिबी के साथ उसके घर तक आ गये।
इसके बाद सिबी के पिता ने उसे बहुत डांटा और पीटा, साथ ही उसके सारे कद्दू तोड़ दिए।
और सिबी से दोबारा ऐसा कभी नहीं करने के लिए कहा।
जिस शिक्षक ने सिबी से कद्दू लिया था, उसने स्कूल के ही किसी मजदूर को वह कद्दू मुफ़्त में दे दिया।
मजदूर ने उसे अपने घर में सजा दिया,
लेकिन एक बार जब उसके पास पैसे नहीं थे तो वह कुछ पैसों के लिए उस कद्दू को बेचने के लिए एक संग्रहकर्ता के पास जाता है।
उसने 2-3 येन की ही उम्मीद की थी, लेकिन जब संग्रहकर्ता ख़ुद उसे 5 येन देने की बात कहता है तो वह हैरान हो जाता है।
वह उतनी कीमत पर कद्दू देने को तैयार नहीं होता।
अंत में संग्रहकर्ता उसे 50 येन देता है, जो उसके साल भर की कमाई से भी ज्यादा होता है।
लेकिन वह यह बात किसी को नहीं बताता।
वह शिक्षक, सिबी के पिता और ख़ुद सिबी भी कभी नहीं जान पाते कि उसके कला की कितनी क़ीमत थी।
इस तरह यह कहानी सन्देश देती है कि किस तरह कई अभिभावक और शिक्षक बच्चों के रूचियों की कोई परवाह नहीं करते और उन्हें अपने हुनर को निखारने संवारने का मौका कभी नहीं मिल पाता। यह बच्चों के साथ एक तरह का अन्याय है।